द गर्ल इन रूम 105–३०
इंस्पेक्टर राणा बेड के पास गए और ज़ारा की गर्दन का मुआयना किया। 'यह सुसाइड नहीं है, किसी ने इसका गला घोंटकर हत्या की है।'
कमरे की खुली खिड़की से ठंडी हवा का एक झोंका भीतर चला आया। सभी चुप हो गए। एक सुरक्षा
अधिकारी वॉचमैन से मुखातिब होकर बोला, 'लक्ष्मण, यह कैसे हुआ?'
वॉचमैन ने दोनों हाथ जोड़ लिए।
'कुछ नहीं पता, साहब।"
"तुमने किसी को अंदर आते हुए देखा था?' सुरक्षा अधिकारी ने उस पर चिल्लाते हुए कहा।
यहां कोई नहीं आया, मैं पूरे समय ड्यूटी पर था।' 'तुम सो गए थे क्या? या अपनी पोस्ट छोड़कर कहीं और चले गए थे?' इस बार निगरानी अधिकारी ने उस
पर चिल्लाते हुए कहा । वॉचमैन ने सिर हिला दिया। उसका पूरा शरीर कांप रहा था लेकिन ठंडी हवा के कारण नहीं।
'सच सच बताओ, क्योंकि मैं वैसे भी एंट्रेंस के सीसीटीवी फुटेज देखूंगा.' निगरानी अधिकारी ने कहा । आखिर निगरानी अधिकारी को भी किसी ना किसी के सिर पर इस हादसे का ठीकरा फोड़ना ही था, क्योंकि उसकी तमाम पैट्रोलिंग और निगरानी के बावजूद कोई कैंपस में आकर एक स्टूडेंट की हत्या कर गया था।
"नहीं, साहब, मैं पूरे समय अपनी ड्यूटी पर था और जाग रहा था।" "तो फिर ये दोनों हॉस्टल में कैसे आ गए?' सुरक्षा अधिकारी ने मेरी और सौरभ की ओर इशारा करते हुए पूछा। इस सवाल का वॉचमैन के पास कोई जवाब नहीं था। निगरानी अधिकारी ने उसे तमाचा जड़ दिया। शायद
वो पुलिस के सामने अपना रौब झाड़ना चाह रहा था। "बंद करो ये सब इंस्पेक्टर राणा ने कहा 'हमारा काम तुम मत करो।'
"सॉरी, सर,' निगरानी अधिकारी ने कहा। अपने जूनियर्स के सामने डपटे जाने पर अब वह शर्मिंदगी का
अनुभव कर रहा था। शायद वह भी पुलिस में जांच अधिकारी बनना चाहता था। लोग बड़े होकर पुलिस वाला बनना चाहते हैं। एक इंजीनियरिंग कॉलेज का निगरानी अधिकारी भला कौन बनना चाहेगा?
"तुम वारदात को तो टाल नहीं सके, अभी कम से कम हमें ठीक से अपनी जांच कर लेने दो,' इंस्पेक्टर
ने कहा।
राणा
निगरानी अधिकारी ने सिर झुका लिया। इंस्पेक्टर राणा उसकी अनदेखी कर कमरे में चक्कर लगाने लगे। उन्हें ज़ारा का फ़ोन दिखाई दिया। उन्होंने
उसे चार्जर से बाहर निकाला और एक रूमाल की मदद से उसे उठाया। फिर उन्होंने उसे एक कांस्टेबल को दे
दिया, जिसने उसे अपने प्लास्टिक बैग में रख लिया। फिर उन्होंने उसकी डेस्क में उसके डॉक्यूमेंट्स चेक किए,
लेकिन ज़ारा के पीएचडी सबजेक्ट के काग़ज़ देखकर उन्हें कुछ समझ नहीं आया। उन्होंने उन्हें वापस डेस्क में रख दिया और खिड़की के पास गए। खिड़की अंदर से बंद थी।
खिड़की बंद है यानी क़ातिल दरवाज़े से आया था। ' मैं जानता था कि इस मौके पर कुछ भी बोलना मुसीबत को न्योता देना है, फिर भी मुझे कहना पड़ा,
“सर, खिड़की खुली थीं। उसी से मैं और सौरभ अंदर आए थे। वॉचमैन को वारदात की ख़बर देने जाने से पहले हमने इसे अंदर से बंद कर दिया था।"
अब इंस्पेक्टर हमारी ओर मुड़े। 'तुम दोनों हो कौन? और यहां पर कैसे पहुंचे?'
'सर, मैं हर चीज़ एक्सप्लेन कर सकता हूं, मैंने कहा ।
और फिर अगले पांच मिनट तक मैं इंस्पेक्टर को पूरी कहानी सुनाता रहा।
"और तब मैंने सौरभ को ऊपर बुलाया और हमने पुलिस को फोन करने का फ़ैसला लिया, मैंने अपनी मैंने सभी के चेहरों को देखा। उनमें से किसी को इस कहानी पर यकीन नहीं था। सबसे ज्यादा हैरान तो
कहानी ख़त्म की।
निगरानी अधिकारी लग रहा था। वो क़त्ल से भी ज्यादा इस कहानी से नाराज मालूम हो रहा था। "तुम पेड़ पर चढ़कर एक आईआईटी गर्ल्स हॉस्टल के रूम में घुस गए? और वो भी आउटसाइडर होकर?
तुम अपने आपको समझते क्या हो?" * सॉरी, सर, वो एक भूल थी, लेकिन...'